छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट का महत्वपूर्ण फैसला, पुत्र धर्म तो निभाना पड़ेगा

Chhattisgarh Crimes

बिलासपुर। छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट की सिंगल बेंच ने अपनी एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा कि बेटे को बुजुर्ग माता पिता की सेवा सुश्रुसा करनी होगी। सम्मानजनक जीवन जीने का अधिकार है। परिस्थितियां जो भी हो पुत्र धर्म तो निभाना ही पड़ेगा। सिंगल बेंच ने कहा कि वृद्ध माता पिता की देखभाल करना पुत्र के लिए अनिवार्य है। पुत्र अपना धर्म नहीं निभा पा रहा है तो सुप्रीम कोर्ट ने वुद्ध माता पिता के लिए कानूनी अधिकार देकर सुरक्षा प्रदान करने की व्यवस्था की है।

सीनियर सिटीजन एक्ट 2007 में दिए गए प्रविधान के तहत अपनी संपत्ति सुरक्षित रखने का अधिकार दिया गया है। ऐसी स्थिति में पुत्र को पिता की संपत्ति वापस करनी पड़ेगी। वृद्ध पिता की याचिका पर सुनवाई करते हुए हाई कोर्ट ने याचिकाकर्ता पिता को भरण पोषण के लिए प्रति महीने पांच हजार स्र्पये देने और सात दिन के भीतर मकान खाली करने का आदेश दिया है।

जिला दंडाधिकारी न्यायालय और ट्रिब्यूनल के फैसले को चुनौती देते हुए नीरज बघेल ने छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट में याचिका दायर कर टिब्यूनल के फैसले को रद करने की मांग की है। मामला कुछ इस प्रकार है। रायपुर निवासी वृद्ध सेवालाल ने पहले जिला दंडाधिकारी न्यायालय रायपुर और फिर बाद में ट्रिब्यूनल में आवेदन पेश कर गुहार लगाई कि उनका छोटा बेटा नीरज बघेल वर्ष 2009 से रायपुर स्थित उनके मकान में परिवार सहित रह रहा है। तब वह भी अपने छोटे बेटे के साथ ही रहता था। छह साल तक साथ रखने के बाद वर्ष 2017 में उसे घर से बेघर कर दिया। इस बात की जानकारी जब बड़े बेटे को हुई तब उसने उसे अपने साथ रख लिया है। याचिकाकर्ता वृद्ध का कहना है कि उसका छोटा बेटा सरकारी स्कूल में प्राचार्य के पद पर कार्यरत है। हर महीने 50 हजार से ऊपर वेतन मिलता है। लिहाजा वह उसका खर्च चला सकता है। खर्च देने के बजाय वह उसे तंग करता है और घर से निकाल दिया है। मामले की सुनवाई के बाद जिला दंडाधिकारी रायपुर व ट्रिब्यूनल ने वृद्ध के पक्ष में फैसला दिया है। ट्रिब्यूनल और जिला दंडाधिकारी के आदेश को नीरज बघेल ने हाई कोर्ट में याचिका दायर कर चुनौती दी। याचिकाकर्ता ने कहा कि मां उसके साथ रहती है। याचिकाकर्ता ने बताया कि मां ने पिता के खिलाफ परिवार न्यायालय में आवेदन पेश कर भरण पोषण के लिए मामला दायर किया है। परिवार न्यायालय में मामला लंबित है। याचिका के अनुसार पिता रिटायर कर्मचारी हैं। उनको पेंशन मिलता है। इसके अलावा रायपुर स्थित एक मकान का प्रति महीने 10 हजार स्र्पये किराया भी खुद ही लेते हैंं। हाल ही में साढ़े छह लाख स्र्पये में जमीन भी बेचे हैं। यह राशि खुद ही रखे हैं। पिता अपनी देखभाल करने में सक्षम हैं।

याचिकाकर्ता के तर्क से कोर्ट ने जताई असहमति

मामले की सुनवाई जस्टिस दीपक तिवारी के सिंगल बेंच में हुई। सिंगल बेंच ने याचिकाकर्ता के तर्कों से असहमति जताते हुए कहा कि परिस्थितियां चाहे जो भी हो पुत्र धर्म तो निभाना ही पड़ेगा। बृजुर्ग माता पिता की सेवा करना पुत्र का धर्म है और कर्तव्य भी यही है। सुप्रीम कोर्ट ने वृद्धों को कानूनी अधिकार से भी सुरक्षित रखा है। सीनियर सिटीजन एक्ट 2007 में दिए गए प्रविधान के अनुसार बुजुर्ग अपनी संपत्ति सुरक्षित रखने का पूरा अधिकार रखते हैं। भले ही वह अक्षम हों। उनकी संपत्ति उनको देनी ही होगी। इस महत्वपूर्ण व्यवस्था के साथ कोर्ट ने याचिका को खारिज कर दिया है।