1663 गांजा तस्कर गिरफ्तार, 303 को सजा, 319 बरी; वजह- गलत जांच या लापरवाही

Chhattisgarh Crimesकुल 1487 केस, इनमें से 766 पुलिस या कोर्ट के पास लंबित, 1040 आरोपी
बिलासपुर|गांजा तस्करी और बिक्री मामले में पुलिस की जांच में बड़ी लापरवाही सामने आई है। पुलिस के आंकड़ों के मुताबिक 24 साल में गांजा तस्करी के 1487 मामले दर्ज किए। इनमें 1663 आरोपी पकड़े गए, जिनके पास से 10.43 करोड़ रुपए के मादक पदार्थ जब्त किए गए। 303 को सजा हुई, जबकि 319 बरी हो गए।

ऐसा इसलिए, क्योंकि पुलिस ने जांच में कई गलतियां कीं, जिसे आधार बनाते हुए कोर्ट ने आरोपियों के पक्ष में फैसला दिया। उक्त 1487 मामलों में से 721 खत्म हो गए। बाकी 766 केस कोर्ट या पुलिस के पास लंबित हैं। आरोपियों को सजा क्यों नहीं हो रही, इसकी पड़ताल में सामने आया कि पुलिस जरूरी प्रक्रिया में ही लापरवाही बरत रही है।

जितने पैकेट गांजा के मिलते हैं, सभी से सैंपल लेना चाहिए। ऐसा नहीं होता।
मालखाना रजिस्टर में सैंपल निकालने व एफएसएल भेजने की एंट्री हो। एफएसएल से लौटन की एंट्री जरूरी है, ​जो नहीं की जाती।
अपराध नंबर का उल्लेख दस्तावेज में करना चाहिए, ये पहले ही दर्ज किया जाता है।
छापे की सूचना में एसडीओपी/डीएसपी का सील, आवक, नंबर, साइन और दिनांक हो।
अगर आरोपी के पास मोबाइल है तो लोकेशन और कॉल डिटेल लगाना जरूरी है।
छापे की पूरी कार्यवाही की वीडियो रिकॉर्डिंग नहीं होती, इसका लाभ आरोपियों को होता है।
मजिस्ट्रेट की मौजूदगी में तलाशी जैसी प्रक्रिया का पालन नहीं हो रहा

​​​​​​​एनडीपीएस एक्ट की धारा 42,43, 52, 57 सहित कुछ धाराओं का हर हाल में पालन करना ही है। 42 और 50 जैसे अनिवार्य प्रावधानों के पालन में लापरवाही का लाभ आरोपियों को कोर्ट में मिलता है। इसके सहारे न केवल आरोपी जमानत हासिल कर लेते हैं, बल्कि रिहाई भी हो जाती है। धारा 52 ए के तहत मादक पदार्थ के संबंध किसी भी आरोपी व्यक्ति की तलाशी और गिरफ्तारी के दौरान मजिस्ट्रेट की उपस्थिति अनिवार्य है, जबकि पुलिस अधिकांश मामलों में इसका पालन नहीं करती। इसी तरह धारा 40 के तहत जांच, तलाशी और गिरफ्तारी के दौरान नियम तोड़े जाते हैं।

जानिए… पुलिस की लापरवाही ऐसे पड़ रही भारी

सिविल लाइन थाने में दर्ज 19 सितंबर 2024 के अपराध क्रमांक 598/2023 की विवेचना तत्कालीन एएसआई गोविंद दुबे ने की थी। कोर्ट में पेश चालान में प्राथमिक साक्ष्य का अभाव था। बयान में विवेचना अधिकारी व मुख्य परीक्षण अधिकारी के कथन में विरोधाभास पाया गया।

सिविल लाइन थाने के अपराध क्रमांक 44/2023 धारा 21 सी, 29 एनडीपीएस एक्ट की जांच तत्कालीन एएसआई सुमेंद्र खरे ने की थी। इसमें जब्त कोडिनयुक्त सीरप का भौतिक सत्यापन 31 मई 2023 को कराया गया। इससे पहले ही औषधि निरीक्षक और एफएसएल को सैंपल भेजा जा चुका था।

सिटी कोतवाली अपराध क्रमांक 303/2021 धारा 22 सी एनडीपीएस एक्ट की जांच एएसआई विजय राठौर ने की। रासायनिक परीक्षण के लिए लैब भेजे गए सैंपल को मजिस्ट्रेट की उपस्थिति में नहीं लिया गया। भौतिक सत्यापन 30 अक्टूबर 2021 को हुआ और उससे पहले ही औषधि निरीक्षक कार्यालय व एफएसएल भेजा जा चुका था।लापरवाही पर हजार रुपए अर्थदंड या निंदा की सजा
पुलिस की लापरवाही के कारण कोर्ट से आरोपियों के बरी होने के मामलों में विवेचकों को सिर्फ 500 से 1000 रुपए की सजा दी जा रही है। किसी में तो केवल निंदा की सजा दी गई है। विवेचकों की जिम्मेदारी तय जरूरी है कि इसे और सख्त किया जाए।

एनडीपीएस एक्ट की कार्रवाई में तकनीकी समस्याएं आती हैं। विवेचकों से छोटी-मोटी गलती हो जाती है और अपराधी कोर्ट से छूट जाते हैं। विवेचकों को प्रशिक्षण देंगे। ऐसे मामलों की जांच में विवेचकों के साथ थानेदारों को जिम्मा सौंपेंगे।

Exit mobile version