डिजिटल युग में लाल डिब्बे की पूछ परख हुईं कम, अब सुनाई नहीं देती डाकिये के सायकल की घंटी

Chhattisgarh Crimes

फिल्म “पलकों की छांव” का वो मशहूर गीत जिसे हर दिल अजीज सुरो के बेताज बादशाह किशोर कुमार ने गाया था। ” डाकिया डाक लाया” जब भी कानों में गूंजता है तो बरबस ही हमें वो दिन याद आ जाता है। जब खाकी वर्दी व टोपीधारी डाकिया गांवों में सायकल की घंटी बजाते दाखिल होता था और लोगों को यह संदेश देता था कि वह अपनों का संदेश भरा खत जो कभी अंतर्देशी या पोस्टकार्ड में आया करता था। डाकिया के सायकल की वह घंटी लोगों के मन में अपनों के कुशलखेम के प्रति संजीदा कर देता था। पर जैसे जैसे संचार छेत्र में क्रांति आती गई वैसे वैसे गांवों में लगे लाल डिब्बे और अंतर्देशी पत्र, पोस्टकार्ड की जहां पुछ परख कम हो गई। वहीं अब डाकियों के सायकल की घंटी भी कहानी बनकर रह गई है।

पूरन मेश्राम, छत्तीसगढ़ क्राइम्स

मैनपुर। आज से करीबन 30 साल पहले गांव में पोस्टकार्ड, अंतर्देशी पत्र में समाचार लिखने वाला एक विशेष व्यक्ति गांव में होता था। जिनके पास गांव के बुजुर्ग मां-बाप या फिर बड़े भैया, बड़ी बहन पहुंचकर अपनों से दूर रहने वाले संबंधियों के लिए विशेष खबर पोस्ट कार्ड एवं अंतरदेशीय पत्र के माध्यम से घर के माली हालत खेती खार स्वास्थ्य पढ़ाई लिखाई या फिर 500 रुपये भिजवाने के लिए जरूर चिट्ठी में खबर के माध्यम से जिक्र होता था। समाचार लिखने वाला गांव के पढ़े-लिखे बाबू बकायदा ओम गणेशाय नम: से चिट्ठी लिखने का शुरूआत करते हुए बुजुर्ग बाप अपने बेटे के लिए चिट्ठी में शुभ आशीष शब्द से पत्र लिखना प्रारंभ करवाते थे ओर खत का माजबून कुछ इस तरह होता था।

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लिखना समाचार मालूम हो, कि हम लोग यहां पर परिवार सहित खुशी से हैं। आप लोग भी खुशी पूर्वक जिंदगी जी रहे होंगे। अपने बेटे का नाम लिखकर प्रिय अशोक बाबू खेती किसानी के सीजन चल रहा है। मजदूर खेती में लगाया हूं। आपके छोटे भाई बहन स्कूल में दाखिला लिया है। घर के काम धंधा अधिक होने के कारण आपके मां की तबीयत आये दिन खराब रहने से में बेहद परेशान रहता हूंँ। बाकी सब कुशल मंगल से हैं। फिलहाल मुझे 500 भिजवाने का कष्ट करेंगे। ज्यादा क्या लिखूं आप खुद समझदार हैं। आपके मां कहती है बेटा का याद बहुत आ रही है। दीपावली में जरूर आना बेटा। अंतर्देशी पत्र सीधा पोस्ट आफिस के बॉक्स में पहुंचता था। अपने बेटा के जवाबी पत्र के इंतजार में बूढ़े मां बाप का या फिर रक्षाबंधन की सीजन में बहन के द्वारा लिखा हुआ चिट्ठी पोस्टमेन घंटी की टन टन आवाज लगाते हुए घर तक पहुंच कर चिट्ठी पहुंचाते थे। समय परिवर्तन के आधार पर संचार के नई तकनीक आने के कारण पूरी तरह से चिट्ठी पत्री बंद हो गया है। आज मोबाइल के माध्यम से घंटों के काम मिनटों में मिंनटो के काम सेकेंडों में होने लगें है। लेकिन भाई बहन का प्यार मां-बाप का स्नेह चिट्ठी के लिए ओझिल आंखें आज तरसने लगी है। शायद ये समय अब दोबारा नहीं आएगा।

इस संबंध में शाखा डाकपाल शोभा नूतन ध्रुव कहते हैं-पोस्ट आफिस में सिस्टम तो अभी भी है। लेकिन डिजिटल हो जाने के कारण अंतर्देशी, मनीआर्डर, लिफाफा आना समाप्त हो गई है। वर्तमान में सिर्फ बीमा, पुलिस विभाग सहित रजिस्ट्री डाक आती है। थोड़ा बहुत रक्षाबंधन के त्यौहार में चिट्ठी पत्री पहुंचती है।