देश के 10 प्राचीन में से एक है रायपुर का महंत घासीदास म्यूजियम, जहां रखी है 17 हजार से अधिक पुरावशेष

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रायपुर। भारत के 10 पुराने म्यूजियमों में से एक रायपुर का महंत घासीदास म्यूजियम है। प्राचीन और ऐतिहासिक वस्तुओं को संरक्षित रखने, जन-जन तक जानकारी पहुंचाने के लिए म्यूजियम की स्थापना की गई थी। पहले यह म्यूजियम इंग्लैंड की महारानी के ताज के आकार वाले अष्टकोणीय भवन में संचालित होता था।

राजनांदगांव के राजा महंत घासीदास ने 1875 में दो हेक्टेयर जमीन दान में दी थी। उसी जमीन पर म्यूजियम बनाया गया था। काफी सालों तक यह वहीं संचालित होता रहा। जब प्राचीन वस्तुओं का संग्रह बढ़ता गया और जगह छोटी पड़ने लगी तब अष्टकोणीय भवन से थोड़ी दूरी पर नया म्यूजियम बनाया गया। इसे रानी ज्योति और पुत्र दिग्विजय ने बनवाया। नए म्यूजियम भवन का लोकार्पण 1953 में प्रथम राष्ट्रपति स्व. डा. राजेंद्रप्रसाद ने किया था।

17 हजार से अधिक पुरावशेष

महंत घासीदास संग्रहालय अध्यक्ष डा. प्रतापचंद्र पारख बताते हैं कि यहां 4,325 गैरपुरावशेष सामग्री और लगभग 13 हजार पुरावशेष का संग्रह है। इनमें प्राचीन हथियार बंदूक, तीर, भाला, फरसा, तलवार, राजा-महाराजा के वस्त्र, चांदी, तांबा के सिक्के, बर्तन, तीर्थंकरों, देवी-देवताओं की प्रतिमाएं, शिलालेख समेत अनेक वस्तुएं शामिल हैं।

दो फ्लोर पर आठ गैलरियां

संग्रहालय में ग्राउंड फ्लोर, फर्स्ट फ्लोर और सेकंड फ्लोर पर आठ गैलरियां हैं। इनमें प्राकृतिक इतिहास गैलरी, मानव विज्ञान गैलरी, जनजातीय गैलरी और प्राचीन शस्त्र और शस्त्रागार गैलरी शामिल हैं। एक गैलरी की खासियत यह है कि इसमें असली जंगली जीव-जंतुओं, पक्षियों के शरीर को कैमिकल लगाकर सुरक्षित रखा गया है, जो बच्चों के लिए आकर्षण का केंद्र है।

ताला के रुद्र शिव की प्रतिमा आकर्षण का केंद्र

संग्रहालय में छत्तीसगढ़ पुरातत्व स्थलों से प्राप्त प्रतिमाएं, शिलालेख आकर्षण के केंद्र हैं। प्राचीन बौद्ध स्थल सिरपुर, मल्हार, रतनपुर, आरंग, सिसदेवरी, डीपाडीह, भोरमदेव के अलावा मध्यप्रदेश के कारीतलाई से प्राप्त छठवीं सदी की प्रतिमाएं दर्शनीय हैं। ताला के रुद्र शिव की प्रतिमा और सिसदेवरी की प्रतिमाओं की शिल्पकारी पर्यटकों को खासी लुभाती है।

बोधिसत्व मंजुश्री प्रतिमा

ऐतिहासिक स्थल सिरपुर की खोदाई में मिले मिट्टी के दीपक, खिलौने, बौद्ध बीज मंत्र, कौशाम्बी के शासक धनदेव के काल के प्राचीन मुद्रांक, धातु से बनी प्रतिमा बोधिसत्व मंजुश्री आदि देखने लायक हैं।

ब्राह्मी लिपि में ताम्रपत्र

तांबे की चादर पर ब्राह्मी लिपि, संस्कृत भाषा में दस्तावेज और कुषाण, गुप्त, शरभपुरीय, कलचुरि, मुगल, मराठा, ब्रिटिशकाल के सिक्कों की प्रदर्शनी भी है।

ग्रामीण संस्कृति की झलक

बस्तर, सरगुजा के जंगल क्षेत्र के जनजातीय समुदायों की ग्रामीण संस्कृति को प्रस्तुत करती झोपड़ी, वस्त्र, आभूषण, बाजा यंत्र, वृक्ष के पत्तों से बनी रेनकोट, छाल से बना वस्त्र, पत्तों की टोकरी, लकड़ी के कंघे आदि प्रदर्शित हैं। इनका इस्तेमाल मारिया, गोंड़, कोरकू, उरांव, बंजारा जाति के लोग करते थे।

पारंपरिक नृत्य

संग्रहालय में छत्तीसगढ़ के पारंपरिक सुआ नृत्य, कर्मा नृत्य, पंथी नृत्य, राउत नाचा, बस्तरिया नृत्य, सरगुजिया नृत्य जैसे अनेक नृत्यों को छोटी-छोटी प्रतिमाओं के माध्यम से प्रस्तुत किया गया है।