एक रिसर्च में खुलासा हुआ है कि एयर पॉल्यूशन की वजह से लोग 10 साल जल्दी बूढ़े हो रहे हैं। रिसर्च में कहा गया कि जहरीली हवा के संपर्क में आने वालों को कोविड-19 में बिल्कुल वैसा एक्सपीरिएंस हुआ जैसा उनसे 10 साल बड़े व्यक्ति को हुआ। फ्रेश एयर में सांस लेने वाले मरीजों की तुलना में प्रदूषित हवा में सांस लेने वाले पेशेंट्स 4 दिन ज्यादा अस्पताल में भर्ती रहते हैं।
ऐसा इसलिए हो रहा है क्योंकि प्रदूषित हवा सांस की नली और फेफड़ों पर सीधा असर डाल रही है। इससे अस्थमा जैसी बीमारियों का खतरा बढ़ रहा है।
वहीं, एक अन्य रिसर्च में कहा गया कि वातावरण और डिप्रेशन का असर भी लोगों की उम्र पर होता है। मैकमास्टर यूनिवर्सिटी की रिसर्च के मुताबिक आर्थिक और सामाजिक रूप से वंचित शहरी इलाकों और डिप्रेशन में रहना हमें जल्द बूढ़ा कर सकता है। वातावरण और बायोलॉजिकल ऐज का ये कोरिलेशन व्यक्तिगत स्वास्थ्य और व्यवहार संबंधी रिस्क फैक्टर्स को एनालाइज करने के बाद भी बना रहता है।
वायु प्रदूषण से लोग 36% ज्यादा बीमार पड़ते हैं
बेल्जियम में हुई रिसर्च के मुताबिक, एयर पॉल्यूशन के कारण लोग 36% ज्यादा बीमार पड़ते हैं। वहीं, डेनमार्क में हुई एक रिसर्च में कहा गया कि वायु प्रदूषण के कारण कोविड-19 मरीजों की मौत का रिस्क 23% बढ़ गया है।
300 कोविड-19 मरीजों पर स्टडी हुई
रिसर्चर्स ने मई 2020 से मार्च 2021 के बीच अस्पताल में भर्ती हुए 300 कोविड मरीजों पर स्टडी की। इनके घरों में पाए गए तीन प्रदूषकों- सूक्ष्म कण, नाइट्रोजन डाइऑक्साइड और राख (लकड़ी जलाने के बाद बचने वाला काला पाउडर) से जुड़ा डेटा कलेक्ट किया। इसके अलावा संपर्क में आने वाले पॉल्यूशन के लेवल को भी रिकॉर्ड किया गया।
रिसर्च में सामने आया कि अस्पताल में भर्ती होने के एक हफ्ते पहले जो लोग पॉल्यूशन के ज्यादा लेवल (75%) के संपर्क में आए वो पॉल्यूशन के कम लेवल (25%) के संपर्क में आने वालों की तुलना में 4 दिन ज्यादा अस्पताल में भर्ती रहे।
रिसर्च में ये भी पाया गया कि वायु प्रदूषण के निम्न स्तर के परिणामस्वरूप स्वास्थ्य में सुधार हुआ, जो कि रेमडेसिविर जैसी कोविड के इलाज के लिए उपयोग की जाने वाली दवाओं के 40-80% फायदे के बराबर था।
एयर पॉल्यूशन शरीर पर कैसे असर छोड़ रहा
- प्रदूषित हवा में बेहद बारीक पार्टिकल्स पाए जाते हैं, जिन्हें PM2.5 पार्टिकल कहते हैं। सांस लेने के दौरान ये सीधे फेफड़ों तक पहुंचकर नुकसान पहुंचाते हैं। इसके अलावा नाइट्रोजन ऑक्साइड, सल्फर डाई ऑक्साइड और ओजोन कई तरह से शरीर को डैमेज कर रहे हैं।
- इन सभी चीजों का शुरुआती असर सांस की नली पर दिखता है। फेफड़ों के काम करने की क्षमता घटती है। अस्थमा का खतरा बढ़ता है। प्रदूषित हवा में मौजूद सल्फर डाई ऑक्साइड आंखों और स्किन पर जलन की वजह बनता है।
- वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन (WHO) के मुताबिक सालाना हवा में मौजूद PM2.5 पार्टिकल (प्रदूषण की वजह बनने वाले बेहद बारीक कण) 10 µg/m³ से ज्यादा नहीं होने चाहिए।