महासमुंद। समान नागरिक संहिता बिल को भारत में लागू नहीं करने की आग्रह महामहिम राष्ट्रपति द्रौपदी मूर्मू एवं छत्तीसगढ़ के महामहिम विश्वभूषण हरिचंदन राज्यपाल से सर्व आदिवासी समाज द्वारा पत्र प्रेषित कर किया गया है। छत्तीसगढ़ सर्व आदिवासी समाज महासमुन्द जिलाध्यक्ष मनोहर ठाकुर ने राष्ट्रपति एवं राज्यपाल से निवेदन करते हुए कहा है कि आदिवासी समुदाय अपने विवाह,तलाक,विभाजन, उत्तराधिकारी,विरासत,गोद लेने के मामले में प्रथागत/रुढ़ी विधि के साथ-साथ संवैधानिक अधिकार से भी तबाह होने से बचाने के लिए देश में समान नागरिक संहिता कानून लागू किसी भी स्थिति में नहीं किया जावे।
जिलाध्यक्ष श्री ठाकुर ने आगे पत्र में उल्लेख किया है कि 14 जून 2023 को भारतीय लाॅ कमीशन (लॉ कमीशन ऑफ इंडिया) ने देश में समान संहिता के संबंध में पब्लिक नोटिस जारी किया गया है यह 22 वाॅं लाॅ कमीशन है जिससे देश में लागू करने के उद्देश्य से सभी हितधारकों से इसके पक्ष-विपक्ष आदि पर 14 जुलाई 2023 तक 30 दिनों के अंदर विचार- प्रतिनिधित्व आमंत्रित किया है। यू.सी.सी. पूरे देश के लिए एक कानून प्रदान करेगा जो सभी धार्मिक समुदाय पर उनके व्यक्तिगत परिवारिक मामले जैसी विवाह, तलाक, विरासत, गोद लेने आदि पर लागू होगा भारत का संविधान भाग-IV अनुच्छेद 44 के तहत राज्यों को इसे लागू करने का निर्देश दिया गया है इस अनुच्छेद का पालन नहीं करने पर इसे ना तो अदालतों में चुनौती की जा सकती ना ही इसके माध्यम से लागू किया जा सकता है इसके बावजूद इसे लागू करने के लिए जनहित याचिका दायर की जाती है राज्यों के सार्वजनिक नीति का मामला है ना कि अदालती मामला, प्रजातंत्र में लोकनीति जनमत में निहित है जनता जैसे चाहेगी कानून उसी अनुरूप बनते हैं।
हम जानते हैं कि भारत में विविधता मैं एकता हमारे देश की प्रमुख विशेषताओं में से एक है। भारतीय नागरिक विभिन्न धर्मों समुदायों जातियों एवं जनजातियों से आते हैं। यह एक धर्मनिरपेक्ष देश है। यहां विभिन्न समुदायों जैसे आदिवासियों/जनजातियों के अतिरिक्त ईसाई, यहूदी, मुस्लिम, हिंदू, जैन, बौद्ध, सिख, आदि के अपनी व्यक्तिगत कानून है। और उनके सामाजिक व्यवस्था उनके द्वारा ही शासित होती है। इन्हीं में से भारत देश के 705 आदिवासी समुदाय ऐसे हैं जो भारत देश में अनुसूचित जनजाति/ट्राईबल के रूप में सूचीबद्ध हैं। कोई तो ऐसे हैं जिन्हें अभी तक सूची में शामिल ही नहीं किया गया।आदिवासी समुदाय अपने विवाह, तलाक, विभाजन, उत्तराधिकारी, विरासत, गोद लेने के मामले में प्रथागत/रूढ़ी विधि (customary law) से संचालित है। बहुतायत में ये लिखित और मौखिक रूप में लोक आचरण में है। यहां तक आदिवासी समाज अंतर्गत विभिन्न जाति समुदाय होने के साथ जन्म से मृत्यु तक की रीति – रिवाज हिंदू एवं भारत देश के अन्य जातियों एवं समुदायों से भिन्न (अलग) है । फलस्वरूप हिंदू कानून भी आदिवासियों पर लागू नहीं होते। क्योंकि उनकी अपनी प्रथागत कानून (customer law) है जो संविधान के तहत संरक्षित है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 13( 3)( क) में प्रथा – दस्तूर रीति – रिवाज को कानून का बल दिया गया है। यहां तक कि अदालतों ने भी अपने कई निर्णयों में कहा है कि आदिवासी हिंदू नहीं है। और भी अपने प्रथागत कानूनों द्वारा निर्देशित होते हैं। समान नागरिक संहिता लागू होने से विशिष्ट पहचान प्रभावित होगी जिससे जनजातियां आबादी पर निम्नलिखित प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा :-
(1) भारत देश में सभी जनजातियों के प्रथागत कानून समाप्त हो जाएगा।
(2) प्रथागत कानून के संबंध में छोटानागपुर काश्तकारी अधिनियम 1908 (CNT ACT) संथाल परगना काश्तकारी अधिनियम 1949 (SPT ACT) और देश के प्रत्येक राज्यों में जमीन संबंधी आदिवासियों के लिए अधिनियम बने हैं। विलकिन्सन रूल 1837, पेसा अधिनियम 1996, पांचवी अनुसूची, छठी अनुसूची, समता जजमेंट आदि के तहत उल्लेखित विशिष्ट प्रावधानों एवं सुरक्षा समान नागरिक संहिता के लागू होने से समाप्त हो जाएंगे।
(3) यू.सी.सी. के लागू होने से पूरे भारतवर्ष में विवाह, तलाक, विभाजन, गोद लेने, विरासत और उत्तराधिकारी के संबंध में एक समान कानून होंगे। यह विभिन्न अद्धितीय प्रथागत कानूनों को नष्ट कर देगा।
(4) आदिवासियों की रीति-रिवाजों को कमजोर कर देगी जिन्हें कानून का बल दिया गया है। यह प्रथागत कानून को एक समान कानूनों में बदल देगा। और उनके उल्लंघन को दंडनीय अपराध बना देगा।
(5) वंशानुक्रम और उत्तराधिकारी की मातृ सत्तात्मक और पितृ सत्तात्मक दोनों पद्धतियों का पालन करने वाली जनजातियां प्रभावित होंगी। इससे दोनों के सामाजिक ढांचे में खलल पड़ जाएगा अर्थात टूट जाएगा।
(6) महिलाओं को संपत्ति का समान अधिकार दिया जाएगा अर्थात इसका अर्थ यह है कि पैतृक भूमि (भूमिहारी मुंण्डारी खुंटखट्टी रैयाती) और पूरे देश में जो जमीन संबंधी कानून बने हैं आदि को समान हिंदू कानून के आधार समान रूप से विभाजित किया जाएगा इससे जमीन विखंडन की समस्याएं और भी बढ़ेंगे।
(7), यह देश की महिलाओं को पुश्तैनी जमीन के मालिक होने और किसी को भी खरीदने बेचने के लिए सशक्त करेगा। इससे विवाह विरासत आदि के माध्यम से निहित स्वार्थ द्वारा भूमि हड़पने और अलगाव को और बढ़ावा मिलेगा।
श्री ठाकुर ने महामहिम राष्ट्रपति महोदया जी भारत सरकार एवं महामहिम राज्यपाल महोदय जी छत्तीसगढ़ शासन से विनम्रतापूर्वक आग्रह किया हैं कि आदिवासियों को दिए संवैधानिक अधिकार, अनुच्छेदों, एक्टों, अधिनियमों, पांचवी अनुसूची, छठी अनुसूची, पैसा एक्ट 1996, एवं 13(3)(क) के नियमों कानूनों आदि में आदिवासियों/अनुसूचित जनजातियों के समुचित समुदाय को प्राप्त संवैधानिक अम्लों के विरुद्ध भारत देश में कॉमन सिविल कोड/समान नागरिक संहिता (अर्थात् यू.सी.सी.) बिल भारत देश में लागू न किया जाए।