साहेब थानेदार बदल दिए जानें से क्या अपराध नियंत्रित हो जायेगा !

 संदर्भ: राजधानी में थानेदारों का बदला जाना

Chhattisgarh Crimes

रायपुर। हमनें अक्सर देखा है कि जब भी कहीं अपराध अनियंत्रित हो जाता है तो आमतौर पर पुलिसिंग में कसावट लाने के नाम पर, या हम ये कहें तो अतिशोक्ति नहीं होगी कि लोगों का ध्यान हटाने के लिए थानेदारों की अदला बदली कर दी जाती हैं। भले ही हमारी बातें शीर्ष अधिकारियों को नगवारा गुजरे पर यह शाश्वत सत्य है कि इस तरह की कार्यवाही से ना ही अपराधों पर नियंत्रण पाया जा सकता है और ना ही अपराधियों पर, हां यह जरूर है कि इस तरह की अदला बदली से पुलिसकर्मियों का मनोबल जरूर टूट जाता है।

राजधानी में थानेदारों की अदलबदली तब हुई है जब मीडिया राजधानी में लगातार घट रही चाकूबाजी सहित दीगर अपराधो पर लगातार खबर प्रकाशित कर राजधानी के पुलिसिंग पर सवाल खड़े कर रही है। ऐसे में होना तो यह चाहिए था कि शहर की पुलिसिंग पर कसावट कैसे लाई जाए की इस दिशा में काम करने की जरूरत थी, पर ऐसा ना होकर प्रशासनिक दृष्टिकोण के मद्देनजर निरीक्षकों, उपनिरीक्षकों की इस थाने से उस थाने की अदला बदली कर एक तरह से पुलिस विभाग अपने उपर उठ रही उंगलियों पर पर्दा डालने का प्रयास किया है, विभाग द्वारा की गई अदला बदली की कार्यवाही को इसे पिछले तीन दिनों में गुढियारी, खमतराई,……. थानों क्षेत्रों में हुई चाकूबाजी की वारदात से हुए मौत के बाद जिस तरह से पुलिस की किरकिरी हो रही थीं उससे जोड़कर देखा जा रहा है।

साहेब थानेदारों के थाने तो जरूर बदल दिए गए हैं पर उनकी कार्यशैली तो वहीं होगी जो पूर्व के थाने में थी तो फिर बदला क्या कुछ नहीं बस स्थान जरूर बदल गया? साहेब सही मायने में कुछ करना है तो सबसे पहले थानों को पर्याप्त बल उपलब्ध कराया जाए, थाना क्षेत्रों और आबादी को देखते हुए जो थानों में संख्या बल हैं वह पर्याप्त कतई नहीं है, जो बल उपलब्ध कराया गया है उस बल से थानेदार जिस तरह से काम लेते हैं उसके लिए सही मायने में वें शाबासी के हकदार हैं।

दूसरा यह कि वर्तमान मे जिस तरह से पेट्रोलिंग हो रहा है उसकी मैदानी सच्चाई किसी से छुपी नहीं है। पेट्रोलिंग पार्टियों की नजर अपराधियों पर कम उगाही पर अधिक होती हैं। यहीं कारण हैं कि अपराधियों के हौसले बुलंद हो गए और वें बेखौप अपराधिक घटनाओं को अंजाम दे रहे हैं और पेट्रोलिंग पार्टी बेखबर हैं।

तीसरी बात अपराधियों द्वारा जिस तरह से खुलेआम चाकूबाजी की घटना को दिनदहाड़े अंजाम दिया जा रहा है, उससे तो यही सिद्ध होता है कि पुलिस का सूचना तंत्र पूरी तरह से ढप्प हो गया है। जरूरत है सूचना तंत्र को मजबूत करने के साथ साथ जनता को साथ में जोड़कर उन्हें पुलिस मित्र बनाकर अपराध मुक्त राजधानी बनाने की दिशा में कदम उठाने की। और आखिर में जो सबसे अहम बात यह कि पुलिस का डर अपराधियों पर हो ना कि बेकसूर सीधे साधे आम नागरिकों पर हो।