राहुल गांधी को सुप्रीम कोर्ट से बड़ी राहत, मोदी सरनेम मामले में सजा पर लगी रोक, लड़ सकेंगे चुनाव

सुप्रीम कोर्ट ने पूछा- अधिकतम सजा क्यों? 1 साल 11 महीने होती तो डिसक्वालिफाई नहीं होते

Chhattisgarh Crimes

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को मोदी सरनेम केस में राहुल गांधी की 2 साल की सजा पर रोक लगा दी। हालांकि, कोर्ट ने कहा कि भाषण देते वक्त सावधानी बरतनी चाहिए, उम्मीद है वे आगे ध्यान रखेंगे। इस दौरान कोर्ट ने पूछा कि इस मामले में अधिकतम सजा क्यों? कहा- उन्हें कम सजा भी दी जा सकती थी। वे डिसक्वालिफाई नहीं होते। सजा 1 साल 11 महीने हो सकती थी।

हालांकि राहुल गांधी को सुप्रीम कोर्ट ने सजा पर रोक लगा दी है लेकिन अभी मोदी सरनेम मामले में उन्हें निर्दोष साबित नहीं किया गया है। राहुल गांधी की तरफ से सुप्रीम कोर्ट में सजा के रोक को लेकर याचिका दाखिल की गई थी। इसी पर कोर्ट ने अपना फैसला सुनाया है। अब सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद राहुल गांधी की लोकसभा सदस्यता बहाल हो जाएगी और जल्द ही लोकसभा सचिवालय की तरफ से इस बाबत आदेश भी जारी किया जाएगा।

इससे पहले, सुप्रीम कोर्ट में 3 घंटे बहस चले। राहुल के वकील ने कहा कि मानहािन का केस करने वाले पूर्णेश मोदी का असली सरनेम मोदी नहीं उन्होंने अपना सरनेम बदला है। राहुल की ओर से वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने दलीलें दे रहे हैं। उन्होंने कहा- शिकायतकर्ता पूर्णेश मोदी का असली सरनेम मोदी नहीं है। उन्होंने ये सरनेम बाद में अपनाया है।

भाषणों में गांधी नाम लिए जाने पर किसी एक भी आदमी ने केस नहीं किया। 13 करोड़ लोगों की यह छोटी सी मोदी कम्युनिटी है। इसमें कोई एकरूपता नहीं है। इनमें जो लोग राहुल के बयान पर खफा हैं और केस कर रहे हैं, वो भाजपा दफ्तर में हैं। आश्चर्य की बात है।

राहुल केस की सुनवाई जस्टिस बीआर गवई, पीएस नरसिम्हा और संजय कुमार की बेंच कर रही है। राहुल गांधी ने अपनी सजा पर रोक लगाने की मांग की है। गुजरात हाईकोर्ट ने मानहानि केस में राहुल की 2 साल की सजा पर रोक से इनकार कर दिया था।

सुनवाई शुरू होने से पहले सुप्रीम कोर्ट ने अभिषेक मनु सिंघवी से कहा- आपको सजा पर रोक के लिए इस केस को खास साबित करना होगा, वरना आमतौर पर तो रूलिंग ही लागू होती है।

राहुल के वकील: मानहानि केस के चलते राहुल गांधी को 8 साल के लिए चुप करा दिया गया? लोकतंत्र में मतभेद होते हैं। हिंदी में बोलें तो हम इसे शालीन भाषा कहते हैं। मैं यह समझता हूं और मुझे नहीं लगता कि राहुल गांधी की नीयत किसी को मोदी सरनेम वाले सभी लोगों को नीचा दिखाने की थी। नैतिक पतन की बात आ रही है। ऐसा कोई साक्ष्य नहीं है। यह गंभीर अपराध नहीं है, जमानत दिए जाने वाला केस है। ये ऐसा मामला कैसे बन गया, जिसमें नैतिक पतन शामिल हो?

राहुल के वकील: ये कोई गंभीर अपराधी नहीं हैं। भाजपा कार्यकर्ताओं ने ना जाने कितने केस दर्ज करवाए, लेकिन एक के अलावा कभी कोई सजा नहीं हुई। मोदी कम्युनिटी में जो लोग भी राहुल के बयान से खफा हैं, सिर्फ भाजपा नेता और कार्यकर्ता हैं। इनके खिलाफ आरोप है ही नहीं। यह एक गंभीर मसला है, क्योंकि एक आदमी डिसक्वालिफिकेशन झेल रहा है।

राहुल के वकील: मेरी दलीलें खत्म होने के बावजूद अदालत ने 66 दिन तक फैसला रिजर्व रखा। मैंने मई में दलीलें खत्म कीं और फैसला जुलाई में दिया गया। अभी तक केरल की सीट के लिए भी इलेक्शन कमीशन ने नोटिफिकेशन जारी नहीं किया है। उन्हें लगता होगा कि जीत के चांस काफी कम हैं।

सुप्रीम कोर्ट: इस मामले को राजनीतिक मत बनाइए। सिंघवीजी और जेठमलानी जी, आप ये सारी चीजें राज्यसभा के लिए बचाकर रखिए।

राहुल के वकील: इस इवेंट का कोई एविडेंस ही नहीं है। शिकायतकर्ता को वॉट्सऐप पर एक न्यूज पेपर की कटिंग मिली और उसने शिकायत कर दी। उसने नहीं बताया कि उसे यह कटिंग कैसे मिली और किसने उसे भेजी। वास्तव में क्या हुआ, यह एविडेंस एक्ट के तहत साबित ही नहीं हुआ। इसी बीच शिकायतकर्ता हाईकोर्ट जाता है और उसे ट्रायल पर स्टे मिल जाता है ताकि वो और साक्ष्य जुटा सके। एक महीने बाद सजा सुना दी जाती है।