तीन दिनों के भीतर काम पर नहीं लौटे तो संविदाकर्मियों पर एस्मा के तहत होगा एक्शन, बृजमोहन बोले ये तुगलकी फरमान

Chhattisgarh Crimes

रायपुर। नवा रायपुर में नियमितिकरण की मांग को लेकर पिछले 22 दिनों से संविदा कर्मचारियों का आंदोलन जारी है। इन सभी ने सरकारी दफ्तरों में कामकाज बंद कर हड़ताल शुरू कर दी है। संविदा कर्मचारियों की प्रदेश में संख्या 45 हजार है। इन सभी कर्मचारियों पर सरकार ने कार्रवाई का ऐलान कर दिया है।

कार्रवाई का आदेश।

सरकार की ओर से संविदा कर्मचारियों के संबंध में एक आदेश जारी किया गया है। जिसमें लिखा गया है कि 3 दिनों के भीतर अगर हड़ताल पर गए संविदा कर्मचारी और अधिकारी काम पर नहीं लौटे तो उनके खिलाफ एस्मा के तहत कार्रवाई होगी।

ये है सरकारी आदेश

राज्य सरकार द्वारा संविदा पर कार्यरत अधिकारी/ कर्मचारियों की मांगों के संबंध में सहानुभूति पूर्वक विचार कर वेतन वृद्धि की घोषणा की गई है। वेतन वृद्धि के बाद भी संविदा अधिकारी और कर्मचारी की ओर से अपने कार्यों पर उपस्थित नहीं हो रहे हैं। ये छत्तीसगढ़ सिविल सेवा (संविदा नियुक्ति) नियम 2012 की कंडिका 15 (1) के अनुसार आवरण नियम 1965 का उल्लंघन है।

एस्मा (छत्तीसगढ़ अत्यावश्यक सेवा संधारण तथा विच्छिन्नता निवारण अधिनियम, 1979) की धारा-4 की उपधारा (1) एवं (2) द्वारा प्रदस्त शक्तियों को प्रयोग में लाते कार्रवाई होगी। उनके स्थान पर अन्य अधिकारियों/कर्मचारियों की वैकल्पिक व्यवस्था की जायेगी।

बृजमोहन बोले- कांग्रेस हुई बेनकाब

भाजपा विधायक और पूर्व मंत्री बृजमोहन अग्रवाल ने कहा कि संविदा कर्मचारियों की हड़ताल पर सरकार का एस्मा लगाने का निर्णय इस सरकार के ताबूत में आखिरी कील है। सरकार का कर्मचारी विरोधी चेहरा उजागर हो गया है। अग्रवाल ने कहा कि धोखा और कांग्रेस एक दूसरे के पूरक हैं, चुनाव में वोट लेने के लिए कर्मचारियों को धोखा दिया। कांग्रेस अपने घोषणापत्र उठा कर देखे, चुनाव में कर्मचारियों से वोट लेने जितने भी घोषणा, मेनिफेस्टो में शामिल है, एक भी वादा पूरा नहीं हुआ है।

आज घुटनों के बल चलकर देंगे ज्ञापन

आज संवाद रैली में कर्मचारी घुटनों के बल और दंडवत प्रणाम करके मुख्यमंत्री से जन घोषणा पत्र के वादे संविदा नियमितिकरण को पूरा करने की अपील करेंगे। सूरज सिंह ठाकुर (प्रांतीय मीडिया प्रभारी एवं प्रवक्ता) ने कहा – इस कार्रवाई का संविदा कर्मचारी महासंघ विरोध करती है। शासन इन 23 दिनों में अगर संविदा कर्मचारियों से संवाद स्थापित करती तो निश्चित रूप से एक रास्ता निकल सकता था। लेकिन सरकार के इस एक्शन से स्पष्ट हो रहा है कि वो बिना संवाद के कार्रवाई करना चाहती हैं, जिसका महासंघ विरोध करता हैं। यह गैर लोकतांत्रिक है।