दुनिया के कुछ विरले लोगों में से एक थे मिसाइलमैन ‘कलाम’

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नई दिल्ली। ऐसे विरले ही लोग होते हैं जिनके जीवन में तमाम तरह के अभाव होते हैं मगर इन अभावों के बाद भी वो अपने सपनों को पूरा करने में कभी पीछे नहीं रहते हैं। मन में अपने सपने को पूरा करने का जुनून रहता है जिसे वो पूरा करके ही मानते हैं। देश के 11 वें राष्ट्रपति के तौर पर शपथ लेने वाले डॉ.एपीजे अब्दुल कलाम भी ऐसे ही विरले लोगों में से एक थे। उनका बचपन का सपना तो एक पायलट बनने का था मगर जब वो उसमें कामयाब नहीं हो पाए तो उन्होंने वैज्ञानिक बनने की ठानी, फिर वो ऐसे वैज्ञानिक बने कि उनके नाम के आगे ही मिसाइलमैन लग गया।

अब आलम ये है कि मिसाइल मैन का जिक्र आते ही बस एक ही नाम जहन में आता है वो है पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम का। भारत के मिसाइल प्रोग्राम को ऊंचाईयों तक पहुंचाने में उनका योगदान अतुलनीय है। विज्ञान और वैज्ञानिकों के प्रति उनका लगाव ही था कि राष्ट्रपति रहते हुए भी वैज्ञानिक उनसे इस बाबत सलाह भी लेते थे और वो इसमें दिलचस्पी भी लिया करते थे। जब केरल थुंबा से भारत ने पहला रॉकेट अंतरिक्ष में भेजा था उस वक्त कलाम भी उस प्रोजेक्ट का हिस्सा थे। विक्रम साराभाई न सिर्फ उनके बॉस थे बल्कि उनके गुरु भी थे। वो अपने काम के अलावा अपने बालों के स्टाइल को लेकर भी पूरी दुनिया में पहचाने जाते थे।

जीता था टीचर्स का दिल

डॉ.कलाम का जन्म 15 अक्टूबर 1931 को रामेश्वरम में हुआ था। वो 2002-2007 तक देश के 11 वें राष्ट्रपति रहे। उन्हें 1997 में देश के सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न से भी नवाजा गया था। इससे पहले उन्हें 1981 में पद्म भूषण, 1990 में पद्म विभूषण सम्मान मिल चुका था। उन्होंने फिजिक्स और एयरोस्पेस इंजीनियंरिंग में डिग्री हासिल की थी। ग्रेजुएशन के अंतिम वर्ष में सभी छात्रों को प्रोजेक्ट दिया गया जिसको तय समय में पूरा करना था। यह प्रोजेक्ट कम ऊंचाई पर उड़ते हुए एक लड़ाकू विमान का था। इसको उन्होंने अपनी मेहनत से तय समय में पूरा किया और अपने शिक्षकों का दिल भी जीत लिया था।

था फाइटर पायलट बनने का सपना

उस दौरान उनके मन में हवा में उड़ने का सपना था और उन्होंने फाइटर पायलट बनने का फैसला किया था। लेकिन फाइटर पायलट बनने के लिए जो टेस्ट हुआ इसमें उनका 9वां रैंक आया था जबकि 8वीं रैंक तक के ही लोगों को ही इसके लिए लिया गया था। ये वो पल था जब उनको बहुत निराशा हुई लेकिन उन्होंने इस निराशा को अपने ऊपर हावी नहीं होने दिया और वैज्ञानिक बनने की ठान ली।

सुखाई पर सवार कलाम

साल 2006 में जब कलाम राष्ट्रपति थे तब उनका वर्षों पुराना सपना सच हुआ था। ये सपना फाइटर जेट में उड़ान भरने का था। अपने राष्ट्रपति कार्यकाल के दौरान उन्होंने सुखोई फाइटर जेट में उड़ान भरी थी। अपने इस अनुभव को साझा करते हुए उन्होंने कहा कि वह विमान को काबू करने की कोशिश में इस कदर खोए रहे कि डरने के लिए समय ही नहीं मिला। उनकी यह उड़ान करीब 40 मिनट की थी। जिस वक्त उन्होंने ये कारनामा किया उस वक्त उनकी उम्र 74 वर्ष की थी।

ऐसे बीते थे आखिरी पल

राष्ट्रपति पद से हटने के बाद वर्ष 2015 में वह शिलांग गए थे। यहां पर उन्हें लेक्चर देना था। उनके इस काफिले में सबसे आगे गाड़ी पर एक जवान हाथ में राइफल लिए चल रहा था। कलाम ने लंबे समय तक सुरक्षा में खड़े इस जवान को वायरलैस से मैसेज भेजा कि वो बैठ जाए। लेकिन जवान ने ये कहते हुए उनका अनुरोध ठुकरा दिया कि उनकी सुरक्षा की जिम्मेदारी उस पर है लिहाजा वो इसको नहीं मान सकता है।