टीएस सिंहदेव से मिले पंडरिया के आदिवासी : कहा- हेलिकाप्टर में घूमना है, समुद्र देखने की इच्छा है, बाबा ने कहा- ठीक है पुरी चलेंगे

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रायपुर। ​​​​​​प्रदेश के उपमुख्यमंत्री टीएस सिंहदेव ने पंडरिया के आदिवासियों से वादा किया है कि उन्हें हेलिकॉप्टर की सैर कराएंगे। पुरी का समुद्र दिखाएंगे। आदिवासी ये सुनकर इतने खुश हुए कि अपने साथ लाई हुई कांग की खीर खाने के लिए दी। बाबा ने पूछा- यह क्या है? इसे कैसे खाते हैं? फिर खुद ही उन्हें किचन में लेकर गए और कहा-इसे बनाओ और मुझे िखलाओ।

ये दिलचस्प वाक्या सोमवार को हुआ। दरअसल, पंडरिया ब्लॉक के कुकदुर तहसील के कुछ आदिवासी सोमवार को बाबा से मिलने रायपुर के सिविल लाइन बंगले पहुंचे थे। झूमर, तिलगट्‌टा, छिंदीडीह के पहाड़ी क्षेत्रों से ये आए थे। आदिवासयों के समूहों की कुछ शिकायतें थी। उन्हें वनअधिकार पट्‌टे और बीज को लेकर अपनी बात रखनी थी। कागज में आवेदन लेकर आए थे। उनके आवेदन को बाबा ने ले लिया, पढ़ा और आदेश दे दिया। कहा- काम हो जाएगा। फिर अनौपचारिक बातचीत का सिलसिला शुरू हुआ।

बाबा ने पूछा- और कोई बात है। कवर्धा से आए एक बैगा आदिवासी ने कहा कि बाबा, हमारा एक सपना है। हम लोग आपको हेलिकाप्टर में आते देखते हैं, तो कहते हैं कि हमें भी हेलिकॉप्टर में बैठना है। बाबा ने मुस्कुराकर पूछा-अरे, कहां जाओगे हेलिकाप्टर में…। आदिवासियों ने कहा कि कहां जाएंगे बाबा, आप जहां भेज दोगे।

इसके बाद फिर बाबा ने कहा- और कुछ? आदिवासियों में से कुछ ने कहा कि हम लोगों ने कभी समंदर नहीं देखा है। समुद्र देखने की इच्छा है। बाबा ने कहा- अच्छा ठीक है। हम तुम सबको हेलिकाप्टर में समुद्र दिखाएंगे। हम सबको पुरी भेजेंगे। हेलिकॉप्टर की सैर भी हो जाएगी और समुद्र भी देख लोगे।

बाबा ने कहा कि आप कितने लोग हैं, जो हेलिकॉप्टर में जाना चाहते हैं। उन्होंने बताया कि करीब चालीस लोग हैं। बाबा ने कहा- ठीक है। 20-20 करके आपको हेलिकॉप्टर में पुरी घुमाने भेजेंगे।

ये सुनकर वहां आए आदिवासी गदगद हो गए। उन्होंने इस दौरान यहां आई रमली बाई बैगा अपने साथ पारंपरिक व्यंजन कांग की खीर लेकर आई। बाबा को समझ नहीं आया, वो क्या चीज थी। उन्होंने रमली से पूछा तो वो समझ नहीं पाई कि बाबा क्या कह रहे हैं। सकुचा गई। सिंहदेव उन्हें किचन में लेकर गए और कहा कि इसे यहां बनाओ। उसने खीर गर्म की और बाबा को खिलाया। थोड़ी थोड़ी खीर यहां मौजूद सभी लोगों ने चखी। इसके बाद आदिवासी चले गए।