पुरानी संसद में मोदी की 50 मिनट की आखिरी स्पीच : नेहरू, इंदिरा, राजीव की तारीफ की; कहा- सदन ने कैश फॉर वोट और 370 को हटते देखा

Chhattisgarh Crimes

नई दिल्ली। पुरानी संसद में सोमवार को संसद की कार्यवाही का आखिरी दिन है। मंगलवार यानी 19 सितंबर से संसद की कार्यवाही नई पार्लियामेंट बिल्डिंग में होगी। पीएम मोदी ने पुराने भवन में 50 मिनट की आखिरी स्पीच दी।

मोदी ने अपनी स्पीच में सदन से जुड़ी कई महत्वपूर्ण घटनाओं का जिक्र किया। अंबेडकर, नेहरू का जिक्र किया।

पीएम ने इस दौरान पूर्व प्रधानमंत्रियों को याद करते हुए कहा- ये वो सदन है जहां पंडित नेहरू का स्टोक्स ऑफ मिडनाइट की गूंज हम सबको प्रेरित करता है। इदिरा गांधी के नेतृत्व में बांग्लादेश के मुक्ति संग्राम का आंदोलन भी इसी सदन ने देखा था।

उन्होंने कहा, ‘आजादी के बाद इस भवन को संसद भवन के रूप में पहचान मिली। इस इमारत का निर्माण करने का फैसला विदेशी शासकों का था। हम गर्व से कह सकते हैं कि इस भवन के निर्माण में पसीना और परिश्रम मेरे देशवासियों का लगा था। पैसे भी मेरे देश के लोगों के लगे।’

केंद्र सरकार ने 18 से 22 सितंबर तक संसद का विशेष सत्र बुलाया है। स्पेशल सत्र में पांच बैठकें होंगी। इस दौरान चार बिल पेश किए जाएंगे। उधर विपक्षी पार्टियों ने सरकार से सवाल-जवाब करने के लिए 9 मुद्दों की लिस्ट तैयार की है। विपक्षी गठबंधन I.N.D.I.A से 24 पार्टियां इस सेशन में हिस्सा लेंगी।

  • यहां से विदाई भावुक पल: इस सदन से विदाई लेना एक बेहद भावुक पल है, परिवार भी अगर पुराना घर छोड़कर नए घर जाता है तो बहुत सारी यादें उसे कुछ पल के लिए झकझोर देती हैं। हम इस सदन को छोड़कर जा रहे हैं, तो हमारा मन मस्तिष्क भी उन भावनाओं से भरा हुआ है और अनेक यादों से भरा हुआ है। उत्सव-उमंग, खट्टे-मीठे पल, नोक-झोंक इन यादों के साथ जुड़ा है।’
  • मैं पहली बार जब संसद आया... पहली बार एक सांसद के रूप में इस भवन में मैंने प्रवेश किया तो सहज रूप से मैंने संसद भवन की चौखट पर अपना शीश झुका दिया। इस लोकतंत्र के मंदिर को श्रद्धाभाव से नमन करते हुए मैंने पैर रखा था। वह पल मेरे लिए भावनाओं से भरा हुआ था। मैं कल्पना नहीं कर सकता, लेकिन भारत के लोकतंत्र की ताकत है, कि रेलवे प्‍लेटफॉर्म पर गुजारा करने वाला एक बच्चा पार्लियामेंट पहुंचता है। मैंने कभी कल्पना भी नहीं की थी कि देश मुझे इतना सम्मान देगा।’
  • हर वर्ग का प्रतिनिधि विविधताओं से भरा: ‘हमारे यहां संसद भवन के गेट पर लिखा है, जनता के लिए दरवाजे खोलिए और देखिए कि कैसे वो अपने अधिकारों को प्राप्त करते हैं। हम सब और हमारे पहले जो रहे वो इसके साक्षी रहे हैं और हैं। वक्त के साथ संसद की संरचना भी बदलती गई। समाज के हर वर्ग का प्रतिनिधि विविधताओं से भरा हुआ। इस भवन में नजर आता है। समाज के सभी तबके के लोगों का यहां योगदान रहा है।’
  • अब तक 7500 से अधिक प्रतिनिधि दोनों सदनों में आ चुके: ‘शुरुआत में महिला सदस्यों की संख्या कम थी, धीरे धीरे उनकी संख्या बढ़ी। प्रारंभ से अब तक 7500 से अधिक प्रतिनिधि दोनों सदनों में आ चुके हैं। इस कालखंड में करीब 600 महिला सांसद आईं। इंद्रजीत गुप्ता जी 43 साल तक इस सदन के साक्षी रहे। शफीकुर रहमान 93 साल की उम्र में सदन आ रहे हैं।’
  • संसद पर आतंकी हमला, हमारी जीवात्मा पर हमला था: लोकतंत्र के सदन में आतंकी हमला हुआ था। यह हमला इमारत पर नहीं बल्कि हमारी जीवात्मा पर हमला हुआ था। ये देश उस घटना को कभी नहीं भूल सकता। आतंकियों से लड़ते हुए जिन सुरक्षाकर्मियों ने हमारी रक्षा की, उन्हें कभी नहीं भूला जा सकता।
  • कई पत्रकार मित्रों ने जिंदगी भर रिपोर्टिंग की: जब आज हम इस सदन को छोड़ रहे हैं तब उन पत्रकार मित्रों को भी याद करना चाहता हूं जो संसद की रिपोर्टिंग करते रहे। कुछ तो ऐसे रहे जिन्होंने पूरी जिदंगी संसद को रिपोर्ट किया है। पहले यह तकनीक उपलब्‍ध नहीं थी, तब वही लोग थे। उनका सामर्थ्‍य था कि वे अंदर की खबर पहुंचाते थे और अंदर के अंदर की भी (खबर) पहुंचाते थे।